-वैद्यनाथ मिश्र "यात्री"

तीव्रगंधी तरल मोबाइल
क्षणस्पंदी जीवन
एक-एक सेकेन्ड बान्हल !
स्थायी-संचारी-उद्दीपन-आलंबन...
सुनियन्त्रित एक-एक भाव !
परकीय-परकीया सोहाइ छइ ककरा नहि
खंड प्रीति सोन्हगर उपायन ?

असह्य नहि कुमारी विधवाक सौभाग्य
असह्य नहि गृही चिरकुमारक दागल ब्रह्मचर्य
सरिपहुँ सभ केओ सर्वतंत्र स्वतंत्र
रोक तोक नहिए कथूक ककरो
राखने रहू, बेर पर आओत काज
अमौटक पुरान धड़िका...
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष !
पघिलओ नीक जकाँ सनातन आस्था
पाकओ नीक जकाँ चेतन-कुम्हारक नवका बासन
युग-सत्यक आबामे...
जुनि करी परिबाहि बूढ़-बहीर कानक
टटका मंत्र थीक,
नबतुरिए आबओ आगाँ !!
उएह करत रूढ़िभंजन, आगू मूँहें बढ़त उएह...
हमरा लोकनि दिअइ आशीर्वाद निश्छल मोने;
घिचिअइ नहि टांग पाछाँ...
ढेकी नहि कूटी अपनहि अमरत्वता’क...

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