tag:blogger.com,1999:blog-26920948887514405362024-03-07T21:29:16.831-08:00मैथिली कविता केर संग्रहRajeev Ranjan Lalhttp://www.blogger.com/profile/18354335177402486449noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2692094888751440536.post-47219055480626421742007-07-28T22:10:00.000-07:002007-07-28T22:48:11.443-07:00वंदना<strong>-वैद्यनाथ मिश्र "यात्री"</strong><br /><strong></strong><br />हे तिरहुत, हे मिथिले, ललाम !<br />मम मातृभूमि, शत-शत प्रणाम !<br />तृण तरु शोभित धनधान्य भरित<br />अपरूप छटा, छवि स्निग्ध-हरित<br />गंगा तरंग चुम्बित चरणा<br />शिर शोभित हिमगिरि निर्झरणा<br />गंडकि गाबथि दहिना जहिना<br />कौसिकि नाचथि वामा तहिना<br />धेमुड़ा त्रियुगा जीबछ करेह<br />कमला बागमतिसँ सिक्त देह<br />अनुपम अद्भुत तव स्वर्णांचल<br />की की न फुलाए फड़ए प्रतिपल<br />जय पतिव्रता सीता भगवति<br />जय कर्मयोगरत जनक नृपति<br />जय-जय गौतम, जय याज्ञवल्कय<br />जय-जय वात्स्यायन जय मंडन<br />जय-जय वाचस्पति जय उदयन<br />गंगेश पक्षधर सन महान<br />दार्शनिक छला’, छथि विद्यमान<br />जगभर विश्रुत अछि ज्ञानदान<br />जय-जय कविकोकिल विद्यापति<br />यश जनिक आइधरि सब गाबथि<br />दशदिश विख्यापित गुणगरिमा<br />जय-जय भारति जय जय लखिमा<br />जय-जय-जय हे मिथिला माता<br />जय लाख-लाख मिथिलाक पुत्र<br />अपनहि हाथे हम सोझराएब<br />अपनेक देशक शासनक सूत्र<br />बाभन छत्री औ’ भुमिहार<br />कायस्थ सूँड़ि औ’ रोनियार<br />कोइरी कुर्मी औ’ गोंढि-गोआर<br />धानुक अमात केओट मलाह<br />खतबे ततमा पासी चमार<br />बरही सोनार धोबि कमार<br />सैअद पठान मोमिन मीयाँ<br />जोलहा धुनियाँ कुजरा तुरुक<br />मुसहड़ दुसाध ओ डोम-नट्ट...<br />भले हो हिन्नू भले मुसलमान<br />मिथिलाक माटिपर बसनिहार<br />मिथिलाक अन्नसँ पुष्ट देह<br />मिथिलाक पानिसँ स्निग्ध कान्ति<br />सरिपहुँ सभ केओ मैथिले थीक<br />दुविधा कथीक संशय कथीक ?<br /><br />ई देश-कोश ई बाध-बोन<br />ई चास-बास ई माटि पानि<br />सभटा हमरे लोकनिक थीक<br />दुविधा कथीक संशय कथीक ?<br />जय-जय हे मिथिला माता<br />सोनित बोकरए जँ जुअएल जोंक,<br />तँ सफल तोहर बर्छीक नोंक !<br />खएता न अयाची आब साग !<br />ककरो खसतैक किएक पाग ?<br />केओ आब कथी लै मूर्ख रहत ?<br />केओ आब कथी लै कष्ट सहत ?<br />केओ किअए हएत भूखैं तबाह ?<br />केओ केअए हएत फिकरें बताह ?<br />नहि पड़ल रहत, भेटतैक काज !<br />सभ करत मौज, सभ करत राज !<br />पढ़ता गुनता करता पास-<br />जूगल कामति, छीतन खवास<br />जे काजुल से भरि पेट खएत<br />ककरो नहि बड़का धोधि हएत<br />कहबओता अजुका महाराज<br />केवल कामेश्वरसिंह काल्हि<br />हमरालोकनि जे खाइत छी<br />खएताह ओहो से भात-दालि<br /><br />अछि भेल कतेको युग पछाति<br />ई महादेश स्वाधीन आइ<br />दिल्ली पटना ओ दड़िभंगा<br />फहराइछ सभटा तिनरंगा<br />दुर्मद मानव म्रियमाण आइ<br />माटिक कण कण सप्राण आइ<br />नव तंत्र मंत्र चिंता धारा<br />नव सूर्य चंद्र नवग्रह तारा<br />सब कथुक भेल अछि पुनर्जन्म<br />हे हरित भरित हे ललित भेस<br />हे छोट छीन सन हमर देश<br />हे मातृभूमि, शत-शत प्रणाम !!<br /><br /><span style="font-size:78%;">पटना/15 अगस्त, 1947 (राजकमल प्रकाशन की "यात्री समग्र" से अनुगृहीत)</span>Rajeev Ranjan Lalhttp://www.blogger.com/profile/18354335177402486449noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2692094888751440536.post-42246681064528872352007-07-28T21:44:00.000-07:002007-07-28T21:59:27.986-07:00नबतुरिए आबओ आगाँ...<strong>-वैद्यनाथ मिश्र "यात्री"</strong><br /><br />तीव्रगंधी तरल मोबाइल<br />क्षणस्पंदी जीवन<br />एक-एक सेकेन्ड बान्हल !<br />स्थायी-संचारी-उद्दीपन-आलंबन...<br />सुनियन्त्रित एक-एक भाव !<br />परकीय-परकीया सोहाइ छइ ककरा नहि<br />खंड प्रीति सोन्हगर उपायन ?<br /><br />असह्य नहि कुमारी विधवाक सौभाग्य<br />असह्य नहि गृही चिरकुमारक दागल ब्रह्मचर्य<br />सरिपहुँ सभ केओ सर्वतंत्र स्वतंत्र<br />रोक तोक नहिए कथूक ककरो<br />राखने रहू, बेर पर आओत काज<br />अमौटक पुरान धड़िका...<br />धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष !<br />पघिलओ नीक जकाँ सनातन आस्था<br />पाकओ नीक जकाँ चेतन-कुम्हारक नवका बासन<br />युग-सत्यक आबामे...<br />जुनि करी परिबाहि बूढ़-बहीर कानक<br />टटका मंत्र थीक,<br />नबतुरिए आबओ आगाँ !!<br />उएह करत रूढ़िभंजन, आगू मूँहें बढ़त उएह...<br />हमरा लोकनि दिअइ आशीर्वाद निश्छल मोने;<br />घिचिअइ नहि टांग पाछाँ...<br />ढेकी नहि कूटी अपनहि अमरत्वता’क...Rajeev Ranjan Lalhttp://www.blogger.com/profile/18354335177402486449noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2692094888751440536.post-73217221017573818162007-05-01T00:00:00.000-07:002007-05-01T00:01:10.422-07:00अंतिम प्रणाम<strong><span style="font-size:85%;">वैद्यनाथ मिश्र ’यात्री’</span></strong><br /><br />हे मातृभूमि, अंतिम प्रणाम<br /><br />अहिबातक पातिल फोड़ि-फाड़ि<br />पहिलुक परिचय सब तोड़ि-ताड़ि<br />पुरजन-परिजन सब छोड़ि-छाड़ि<br />हम जाय रहल छी आन ठाम<br /><br />माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम<br /><br />दुःखओदधिसँ संतरण हेतु<br />चिरविस्मृत वस्तुक स्मरण हेतु<br />सूतल सृष्टिक जागरण हेतु<br />हम छोड़ि रहल छी अपना गाम<br /><br />माँ मिथिले ई अंतिम प्रणाम<br /><br />कर्मक फल भोगथु बूढ़ बाप<br />हम टा संतति, से हुनक पाप<br />ई जानि ह्वैन्हि जनु मनस्ताप<br />अनको बिसरक थिक हमर नाम<br /><br />माँ मिथिले, ई अंतिम प्रणाम !Rajeev Ranjan Lalhttp://www.blogger.com/profile/18354335177402486449noreply@blogger.com4